Monday 7 April 2014

मोदी को रोको, मोदी को रोको यह जुमला काफी सुनने को मिल रहा है. यह तो बताओ क्यों रोको ?

वैसे तो हर बार चुनाव के समय सरगर्मी थोड़ी बढ़ जाति है पर इस बार का नज़ारा देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे ये इस देश का अंतिम चुनाव है. आम तौर इस देश की महिलायें जो कल तक अपने पति से सिर्फ मतदान वाले दिन ही पूछा करती थी की किस पार्टी को वोट देना है, वो भी आज अपनी महफ़िलों में सास बहु की चुगलियों को छोड़कर इस बात की चर्चा करने लगी हैं की इस बार के चुनाव में क्या होगा या क्या होना चाहिए. इस चुनाव में चाहे जिसकी भी जीत हो पर इस देश में बदलाव का इससे बड़ा संकेत आज तक देखने को नहीं मिला, जो की इस देश के भविष्य के लिए अति उत्तम है.

एक और बात जो आज से पहले किसी चुनाव में देखने को नहीं मिला वो ये की आज के इस चुनावी मुकाबले में एक तरफ एक पार्टी भाजपा है और दूसरी तरफ बाकी सारी पार्टियाँ हैं. हालाँकि पहले भी भाजपा का विरोध होता आया है पर जिस तरह का विरोध आज देखने को मिल रहा है वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. पहले के चुनावों को देखें तो हर राज्य में एक अलग लड़ाई देखने को मिलती थी, जैसे उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा की लड़ाई, बिहार में राजद और जदयू की लड़ाई, बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट की लड़ाई, तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके की लड़ाई मशहूर थी. चाहे लोक सभा का चुनाव ही क्यों न हो ये पार्टियाँ एक दुसरे पर प्रहार करने से कभी नहीं चुकती थीं. परन्तु आज जिस भी पार्टी को देख लो उसके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ भाजपा और मोदी हैं.

एक और ख़ास बात जो इस चुनाव में देखने को मिल रही है वो ये की सत्ताधारी पार्टी को छोड़कर विपक्षी पार्टी पर निशाना साधा जा रहा है. अगर हम पहले के चुनावों को याद करें तो ऐसा कभी नहीं हुआ. भाजपा को छोड़कर कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जिसका मुख्य मुद्दा कांग्रेस का १० साल के घोटाले या भ्रष्टाचार हो. यहाँ पर सबसे ज्यादा गौर करने की बात ये है की ऐसा उस समय हो रहा है जब विगत 10 सालों में हुए घोटालों की सख्यां पहले किसी भी सरकार के मुकाबले बहुत ज्यादा है. और तो और जिस पार्टी का उदय ही  भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हुआ था आज उस पार्टी के नेता भी कभी इन घोटालों की बात नहीं करते.

वैसे भाजपा भले ही एक राष्ट्रीय पार्टी है परन्तु ये सर्वविदित है की कुछ राज्यों में आज भी निष्प्रभावी है पर हैरानी तो तब होती है जब उन राज्यों के नेताओं के भाषण में भी भाजपा और मोदी का विरोध का मुद्दा सर्वप्रथम होता है. अब तो कुछ नेता जनसभाओं में ये तक बोलने लगे हैं की आप भले ही मुझे वोट मत दो पर मोदी को हरा दो. थर्ड फ्रंट और फोर्थ फ्रंट की बात करने वाले आज "सेकुलर फ्रंट" की बात करने लगे हैं. इन सभी प्रयासों को देखकर तो यही लगता है की भाजपा के अलावा अन्य सभी पार्टियाँ सिर्फ और सिर्फ एक मुद्दे पर चुनाव लड़ रही हैं की "कैसे भी मोदी को रोकना है"


                    मोदी को रोको, मोदी को रोको यह जुमला काफी सुनने को मिल रहा है. यह तो बताओ क्यों रोको ?
                        जहां तक मेरा विचार है, यूपीए-2 की सरकार मे हद से ज्यादा भ्रष्टाचार का सबसे मुख्य कारण कांग्रेस और अन्य कथित सेकुलर पार्टियों का ए यकीन था की वो चाहे जो भी गलत करे, पर चुनाव के समय मे वो भाजपा के सम्प्रदायिक होने का डर दिखा कर फिर से जीत जायेंगे. और आप आज देख लीजिये, आज सारी पार्टियाँ इसी साजिश के अनुसार भाजपा के साम्प्रदायिक होने का मुद्दा उठा रही है.                                               
                       मोदी के आने से क्या बदलेगा क्या नहीं ए मुझे नहीं पता पर इतना जरूर पता है की कांग्रेस की उस सरकार से मुक्ति मिलेगी जिसने 10 साल तक जनता को खून के आँसूं रुलाये हैं. पता नही इतनी सी बात लोग क्यों नहीं समझ पा रहे हैं , मोदी विरोधी लोग |



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