Monday, 12 October 2015
Saturday, 11 July 2015
कहानी मुसाफिर कि
कहानी मुसाफिर कि
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मुसाफिर बनकर इस दुनिया मे आते हैं,
तो क्यूँ किसी से दिल लगाते हैं,
किसी अजनबी को अपना बनाते हैं,
अकेले ही आते हैं इस दुनिया मे ,
इस दुनिया से अकेले ही जाते हैं,
तो फिर साथ जीने मरने का कसमे क्यूँ खाते हैं|
दोश्ती,मोहबत,नफ़रत,परिवार,
सब यही तो पाते हैं|
एक समय बाद सबको छोड़कर चले जाते हैं,
तो फिर क्यूँ,
बिछड़ने के बाद आंशु बहाते हैं|
जानते हैं मुसाफिर आते हैं,
हंसते हैं हँसातेहै|
सुख दुख मे साथ निभाते हैं|
एक दिन सबको छोड़कर चले जाते हैं,
तो फिर क्यूँ ,
तो क्यूँ उनसे नयन लड़ाते हैं,
दिल मे उनको बासाते हैं|
जब वो छोड़कर चले जाते हैं|
तो बेबफा का इल्ज़ाम लगाते हैं|
इलज़ाम लगाने वाले,
एक हक़ीकत भूल जाते हैं,
वो भी एक मुसाफिर हैं,
खुद एक दिन सबको छोड़कर चले जाते हैं|
तो फिर क्यूँ,
किसी पे ग़लत इलज़ाम लगाते हैं|
खुद ही बेबफ़ाई करते हैं,
दूसरो को बेबफा बताते हैं|
खुद भी सारे सफ़र मे रोते हैं,
और दूसरो को भी रुलाते हैं|
दिल हमारे नॅशवार शरीर का हिस्सा हैं,
और प्यार एहसास |
तो फिर क्यूँ,
दिल तोड़ने का इलज़ाम,
प्यार करने वाले पे लगाते हैं|
बिछड़ने का एहसास तो,
सभी को होता हैं,
ये तो सभी को तड़पाते हैं|
पर मुसाफिर को तो जाना है|
इसलिए साथ मे यादे लेकर चले जाते हैं,
और यादे ही छोड़ जाते हैं,
वो जो साथ ले जाते हैं,
वही हमारे पास भी छोड़ जाते हैं|
तो फिर क्यूँ,
हमेशा उनको धोखेबाज, बेबफा आदि नामो से बुलाते हैं|
आख़िर क्यूँ...क्यूँ...क्यूँ...
एक मुसाफिर-विजय कुमार
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